रिपोर्ट: The Mountain Stories | देहरादून
उत्तराखंड की त्रिस्तरीय पंचायत व्यवस्था फिलहाल शून्य स्थिति में है। प्रदेश की 10,760 ग्राम, क्षेत्र और जिला पंचायतें प्रशासकों के कार्यकाल खत्म होने के बाद खाली हो गई हैं। जबकि चुनाव अब तक नहीं हो सके हैं, जिससे प्रशासकों की पुनर्नियुक्ति जरूरी हो गई है। हालांकि इस प्रक्रिया पर हरिद्वार से जुड़ा तकनीकी विवाद आड़े आ रहा है, जिससे पंचायतों का भविष्य फिलहाल अधर में लटका हुआ है।
क्यों फंसी है पंचायतों की पुनर्नियुक्ति?
उत्तराखंड में पंचायती राज अधिनियम के अनुसार, यदि किसी कारणवश पांच वर्षों के भीतर पंचायत चुनाव नहीं हो पाते तो सरकार अधिकतम छह महीने के लिए प्रशासक नियुक्त कर सकती है। इसी के तहत प्रदेश में हरिद्वार को छोड़कर बाकी सभी पंचायतों में छह महीने पहले प्रशासक नियुक्त किए गए थे। अब उनका कार्यकाल 31 मई/1 जून 2025 तक समाप्त हो चुका है।
हरिद्वार का मामला बना बाधा
हरिद्वार जिले में 2021 में प्रशासकों की नियुक्ति के बाद जब उनका कार्यकाल खत्म हुआ और चुनाव नहीं हो सके, तो सरकार ने अधिनियम में संशोधन कर प्रशासकों की पुनर्नियुक्ति के लिए अध्यादेश लाने का प्रयास किया। हालांकि, कुछ समय बाद वहां चुनाव हो गए, जिससे अध्यादेश को विधानसभा से पारित नहीं कराया गया और वह निष्प्रभावी हो गया।
अब उसी अध्यादेश को राजभवन से फिर से पारित कराने की कोशिश की जा रही है, लेकिन सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ की व्यवस्था के अनुसार, किसी वापस लौटाए गए अध्यादेश को उसी रूप में दोबारा लाना संविधान का उल्लंघन माना जाएगा। इसीलिए विधायी विभाग द्वारा भेजा गया अध्यादेश पहले ही एक बार लौटाया जा चुका है। संशोधन के बाद फिर से अध्यादेश भेजा गया है, लेकिन उसे स्वीकृति मिलने की राह आसान नहीं दिख रही।
कितनी पंचायतें हुईं खाली?
प्रदेश में त्रिस्तरीय पंचायतों की स्थिति इस प्रकार है:
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ग्राम पंचायतें: 7,478 (हरिद्वार की 318 को छोड़कर)
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क्षेत्र पंचायतें: 2,941
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जिला पंचायतें: 341
इन सभी में प्रशासकों का कार्यकाल समाप्त हो चुका है, जिससे ये पूरी तरह निष्क्रिय हो गई हैं।
क्या है आगे की राह?
अब सरकार को या तो अध्यादेश में प्रासंगिक संशोधन कर राजभवन से स्वीकृति लेनी होगी या फिर इसे विधानसभा से पारित कर कानूनी रूप देना होगा। तब तक पंचायतें बिना किसी प्रशासनिक प्रमुख के रहेंगी, जिससे स्थानीय विकास कार्यों और योजनाओं पर प्रतिकूल असर पड़ सकता है।
The Mountain Stories की रिपोर्ट के अनुसार, विशेषज्ञों का मानना है कि यह संवैधानिक पेच स्थानीय लोकतंत्र और विकास के लिए चुनौतीपूर्ण बनता जा रहा है। सरकार को चाहिए कि वह इस संवेदनशील मसले को प्राथमिकता पर सुलझाए ताकि ग्राम स्तर तक शासन की पहुंच बनी रहे।