नर्स प्रैक्टिशनर मिडवाइफरी कार्यक्रम को स्वीकृति, सुरक्षित मातृत्व की दिशा में बड़ा कदम
देहरादून। मातृ एवं शिशु स्वास्थ्य को सुदृढ़ बनाने की दिशा में उत्तराखण्ड सरकार ने ऐतिहासिक पहल करते हुए नर्स प्रैक्टिशनर मिडवाइफरी कार्यक्रम को मंजूरी प्रदान की है। यह निर्णय मातृ एवं नवजात शिशु मृत्यु दर में कमी लाने तथा सुरक्षित मातृत्व को बढ़ावा देने की दिशा में मील का पत्थर साबित होगा।
सोमवार को सचिवालय में आयोजित राज्यस्तरीय मिडवाइफरी टास्क फोर्स की बैठक की अध्यक्षता करते हुए स्वास्थ्य सचिव डॉ. आर. राजेश कुमार ने बताया कि इस कार्यक्रम से राज्य में गुणवत्तापूर्ण, सम्मानजनक और साक्ष्य-आधारित मातृत्व सेवाएं उपलब्ध होंगी। गौरतलब है कि वर्तमान में उत्तराखण्ड का मातृ मृत्यु अनुपात (एमएमआर) 104 प्रति एक लाख जीवित जन्म है, जबकि राष्ट्रीय औसत 88 प्रति एक लाख है।
30 नर्स प्रैक्टिशनर मिडवाइफ का होगा पहला बैच
स्वास्थ्य सचिव ने कहा कि शीघ्र ही 30 नर्स प्रैक्टिशनर मिडवाइफ के पहले बैच की शुरुआत की जाएगी। इसके लिए विस्तृत प्रस्ताव तैयार किया जा रहा है। यह 18 माह का विशेष प्रशिक्षण कार्यक्रम देहरादून स्थित राज्य मिडवाइफरी प्रशिक्षण संस्थान में संचालित होगा।
प्रशिक्षण पूर्ण होने के बाद जीएनएम/बी.एससी. नर्सिंग पृष्ठभूमि की मिडवाइफ को चयनित सरकारी स्वास्थ्य संस्थानों में तैनात किया जाएगा। ये प्रशिक्षित मिडवाइफ संस्थानों में सुरक्षित प्रसव सुनिश्चित करेंगी, माताओं एवं नवजात शिशुओं के स्वास्थ्य में सुधार लाएंगी और मातृ मृत्यु दर को घटाने में सहायक होंगी।
सतत् विकास लक्ष्यों के अनुरूप पहल
यह कार्यक्रम भारत सरकार की मिडवाइफरी पहल एवं सतत् विकास लक्ष्यों के अनुरूप है और उत्तराखण्ड को मातृ स्वास्थ्य सेवाओं के क्षेत्र में नई ऊँचाइयों तक ले जाएगा।
बैठक में मिशन निदेशक एनएचएम मनुज गोयल, निदेशक एनएचएम डॉ. रश्मि पंत, निदेशक स्वास्थ्य महानिदेशालय डॉ. सी.पी. त्रिपाठी, डॉ. शिखा जंगपांगी, डॉ. उमा रावत, वरिष्ठ परामर्शदाता डॉ. नितिन अरोरा सहित विभाग के अन्य अधिकारी उपस्थित रहे।